नई दिल्ली। सीबीआई ने सरकारी बैकों का करोड़ों रुपये का लोन नहीं चुकाने वाले बड़े कर्जदारों के खिलाफ जांच शुरू कर दी है। सीबीआई चीफ रंजीत सिन्हा ने कहा कि गैर निष्पादित पूंजी का बड़ा हिस्सा 30 डिफाल्टर खातों से जुड़ा हुआ है, सीबीआई ने कुछ बड़े कर्जदारों के खातों की जांच भी शुरू कर दी है। हालांकि उन्होंने इस संबंध में ज्यादा बताने से इनकार कर दिया और कहा कि पूरी जानकारी देने से जांच प्रभावित हो सकता है।
सीबीआई प्रमुख ने सरकारी बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सीबीआई के मुख्य सतर्कता अधिकारियों के पांचवें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि सीबीआई गैर निष्पादित संपत्तियों का पता लगाने और उनकी वसूली करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कई ऐसे कारण भी गिनाए जिनसे सीबीआई की जांच पर उल्टा असर पड़ रहा है। सीबीआई प्रमुख ने बताया कि बैंक अक्सर अपने डिफाल्टर खातों को जालसाजी का मामला मानने से बचते हैं जिससे फर्जीवाड़े की जांच प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि बैंकों को यह समझने की जरूरत है कि जालसाजी के मामले की जानकारी देने में देर करने से अपराधी की तलाश करना और लोन की वसूली करने में मुश्किल होती है।
रंजीत सिन्हा के बैंक कई बार अपने कर्मचारियों की जवाबदेही तय करने से भी बचते हैं जिससे सरकारी कर्मचारियों की भूमिका को लेकर उनके और सीबीआई के बीच मतभेद की स्थिति पैदा हो जाती है। उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों में 50 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक फर्जीवाड़े के मामले लगभग दस गुना बढ़ गये।
सीबीआई प्रमुख ने कहा कि साल 2009-10 में 50 करोड़ से अधिक की जालसाजी के तीन मामले दर्ज हुए जिनकी कुल राशि 404.13 करोड़ रुपये थी। जबकि 2013 में ऐसे कुल 45 मामले दर्ज हुए जिनमें कुल 5334.75 करोड़ रुपये की राशि का घोटाला हुआ है।
सीबीआई चीफ के मुताबिक जिस तेजी से अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र का विकास हो रहा है, उतनी ही तेज गति से जालसाजी की रकम भी बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि रिजर्व बैंक की एक समीक्षा के मुताबिक साल 2009-10 में जालसाजी के 24 हजार 79 मामलों की तुलना में साल 2012-13 में लगभग आधे 13 हजार 293 मामले दर्ज हुए। लेकिन इस दौरान यह रकम 2037.81 करोड़ रुपये से चार गुना बढ़कर 8646 करोड़ रुपये हो गई।
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