CHIT-FUND: जैसे-जैसे चुनावी माहोल गर्माता जा रहा है वैसे ही चुनाव के नजदीक आते ही पोंजी स्कीम संचालन भी बड़ी तेजी के साथ तुल पकड़ता जा रहा है। इन लोगो ने भोले-भाले निवेशकों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके अपनाने शुरू कर दिए है। इस बार चुनाव की ओट मे लोगो को बना रहे है निशाना। निवेशकों को चुनावों से जुड़ी स्कीमों में पैसा लगाने के लिए आकर्षित कर रहे है साथ ही इनका दावा है कि योजनाओं का परिणाम चाहे कुछ भी हो, निवेशकों को सुनिश्चित ही भारी लाभ दिया जाएगा। फिलहाल नियामक एवं अन्य एजेंसियां इस तरह की स्कीमों में लगने वाले निवेश के आकार को लेकर पुरी तरह से पक्की नहीं हैं, वित्त बाजार की कुछ अग्रणी इकाइयों के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की ‘सुनिश्चित ऊंचे रिटर्न वाली ‘ स्कीमों में निवेशको के हजारों करोड़ रुपए दाव पर लगे है।
कहां निवेश हुआ है जुटाया धन
अग्रणी इकाइयों के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक नियामकों की नजर में एक ऐसी ‘सामूहिक निवेश स्कीम‘ आई है जिसमें जुटाए गए धन का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में निवेश के लिए किया जाएगा जो आने वाली अगली सरकार के लिए अत्यंत महत्वपुर्ण साबित हो सकता है। लेकिन इस स्कीम का संचालन करने वाले संचालको की पहचान का खुलासा करने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा है कि निवेशकों को नए निवेशक बनाने के लिए कमीशन की भी पेशकश की जा रही है।
डब्बा’ कारोबार योजना
नियामक एजेंसियां बीमा और पोर्टफोलियो प्रबंध योजनाओं सहित पूंजी बाजार की योजनाओं में निकासी के मामलों पर निगाहें जमाऐ बैठी है। सूत्रों के अनुसार मुंबई, इंदौर, राजकोट व दिल्ली में कुछ संदिग्ध और ‘डब्बा’ कारोबार जैसी गतिविधियां नजर आई है। पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा के अलावा ऑनलाइन पर भी इस तरह की कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखी हैं। गौरतलब है कि शेयर बाजार विनियामक सेबी 500 से अधिक कंपनियों के खिलाफ गत दिनो निवेशकों से सामूहिक निवेश योजनाओं के नाम पर गैरकानूनी तरीके से धन एकत्रित करने के मामलों में कार्रवाई शुरू की है।
क्या होता है ड़ब्बा कारोबार
डब्बा ट्रेडिंग एक वाहियात तरीके से कारोबार करने का नाम है, जिसको जानना निवेशको के लिए उतना ही जरुरी है जितना कि खाना, खाना होता है,और यह निवेशको की शिक्षा का एक जरूरी अंग भी है, ताकि निवेशक इससे सावधान रह सके। डब्बा ट्रेडिंग की अनुमति कोई नियामक नहीं देता। इसकी कार्यप्रणाली और इससे जुड़े जोखिमों को समझना अति-आवश्यक है।
कहने को तो डब्बा का मतलब डब्बा ही होता है, यानी कि डब्बा आपरेटर जो होता है, उसका आफिस भी किसी रजिस्टर्ड, नियमबद्ध ब्रोकर के आफिस की तरह ही होता है, जो कि शेयर बाजारों से कनेक्शन युक्त है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि ब्रोकर जहां अपने निवेशक ग्राहकों के साथ सभी सौदों को शेयर बाजार की प्रणाली के अनुसार निबटाता है। जबकि डब्बा आपरेटर, सौदों को केवल अपने लेखों में दर्ज करता है और इन सौदों का आधा शेयर बाजार की प्रणाली से कोई मतलब नहीं रखता। डब्बा आपरेटर निवेशक ग्राहक के एजेंट की तरह नहीं, बल्कि अपने में एक संस्था की तरह कार्य करता है। वह रजिस्ट्रेशन, मार्जिन, अंतरण, सौदा निबटान आदि संबंधी किसी भी नियम व कानून के पालन से परे होते है।
निवेश करने से पूर्व बर्ते सावधानी
जानकारों के अनुसार चुनावी सीजन में ऐसी कई योजनाएं देखने को मिलती है जो देखने में ‘ कानून सम्मत ‘पोर्टफोलियो निवेश योजना जैसी लगती हैं जबकि कुछ कंपनियां तो बिल्कुल इसके अपोसिट होती है जो कि कानुन की सीमा रेखा से बाहर होती है। इसलिए यह नियामकों के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है। कुछ योजनाओं के परिचालक निवेशकों को शेयर , म्यूचुअल फंड और बॉन्ड तथा अन्य परिसंपत्तियों से धन निकाल कर अपनी उन योजनाओं में लगाने और संभावित ऊंचा लाभ कमाने का लोभ देते है।
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