“चाणक्य के अनुसार जवानी के जोश मे मानव अपना धर्म कर्म को भुला कर कामवासना की ओर खींचा चला जाता है अर्थात जिसके कारण उसे जीवन भर दुखद परिणाम की आग मे झुलसता रहता है…परंतु इससे भी अधिक मानव के लिए दुखदायिक होता है दूसरो पर निर्भर रहना और दूसरो पर निर्भर रहने वाला मनुष्य कभी भी जीवन मे कोई भी मुकाम हांसिल नही कर सकता है इसलिए अपना काम स्वंय करना चाहिए न कि दुसरो पर टालना चाहिए।”
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