आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मुर्खो की बेबुनियादी तारीफ से बेहतर होगा कि किसी एक बुद्धिमान का डांट सुनना,क्योंकी बुद्धिमान की डांट से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। लेकिन मुर्ख कभी ऐसी बात नही कर सकता जिससे जिससे वह कुछ अच्छा सोच सकता है।
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