
कारण- इस रोग के संभावित कारणों में इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रीटार्डेशन और न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स को शामिल किया जाता है। जब मां की बच्चेदानी में बच्चा विकसित हो रहा होता है तब शिशु के विकास की प्रक्रिया अवरोधित हो जाती है। इस वजह से उसके पैरों में विकृति आ जाती है।
लक्षण- इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में पैर अंदर की तरफ मुड़ता है। मुड़ने की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। वो देर से चलना शुरु करता है। इस कारण बच्चा लंगड़ाते हुए चलता है। ऐसे बच्चों के बैठने पर उनकी एड़ी जमीन से उठी रहती है और बच्चा पांव के बाहरी किनारे से चलने लगता है।
उपचार- शुरुआती दौर में डॉक्टरी सलाह के अनुसार प्लास्टर चढ़ाने और स्ट्रेपिंग आदि के प्रयोग से इस बीमारी को 90 प्रतिशत तक ऑपरेशन के बगैर ठीक किया जा सकता है। इसके लिए पीड़ित बच्चे को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता है। Physiotherapy भी इस समस्या के समाधान में सहायक है। पैर का टेढ़ापन बहुत अधिक होने पर या इलाज देर से प्रारंभ करने पर ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है। आयु के अनुरूप ऑपरेशन की विभिन्न स्थितियां हैं जो 9 महीने से लेकर 10 वर्ष की आयु के बच्चों पर की जाती हैं। अत्याधुनिक ऑपरेशन पद्धति द्वारा यह ऑपरेशन एक छोटे से चीरे से ही संभव है। ऑपरेशन के बाद पीड़ित बच्चे को केवल दो दिनों तक ही अस्पताल में रहना पड़ता है। पैर लगभग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
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