दिल्ली सरकार अब देश मे बढ रहे चिटफंड के संचालको के गड़बडझाले से अब पुरी तरह से चौकन्नी हो गई है। दिल्ली सरकार ने राजधानी मे धडल्ले से संचालित हो रही चिटफंड कंपनी पर शिकंजा कसते हुऐ रेगयुलेटरी सिस्टम बनाने की प्रक्रिया शुरु कर दी है। इसमे वित्त विभाग ने संबधित नियम व कायदे कानुन गठित कर उपराज्यपाल नजीब जंग को सौंप दिया है। राजनिवास से इसके पास होने की हरी झंडी मिलते ही इसे लागु कर अमल मे लाया जाएगा। वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राजधानी मे हजारो लाखो ऐसी चिटफंड कंपनियां का संचालन हो रहा है जो आऐ दिन गरीब लोगो का पैसा लुटकर रफ्फु-चक्कर हो जाते है। दिल्ली विधानसभा में दिल्ली चिटफंड एक्ट पारित होने के बावजूद अभी तक इनकी मानीटरिंग के लिए रेग्युलेटरी सिस्टम जैसी कोई व्यवस्था बना पाई है जिससे कि यह चिटफंड धोटाले मे कमी आ सके।
इस परिस्थिती मे चिटफंड कंपनियों में लगे दिल्ली वासियों की खासा मोटी रकम के डूबने का खतरा बराबर बना रहता है। लेकिन अब देर से ही सही, वित्त विभाग निंद से तो जागा । इन नॉन बैंकिग फाइनैंशियल कंपनियों को रेग्युलेट करने के लिए नियम-कायदे कानुन बना लिए गए है। इसके तहत डिफाल्टर कंपनियों की प्रॉपर्टी सील कर उसे नीलाम करने की कार्रवाई शुरू करने, तय समय सीमा में अदालती कार्रवाई पूरी करने व निवेशकों के धन को सुरक्षित उन तक पहुंचाने जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अमूमन देखने में आया है कि चिटफंड कंपनियां रजिस्टार, चिटफंड के यहां अपना रजिस्ट्रेशन करवा लेती हैं, लेकिन इसके बाद रेग्युलेटरी सिस्टम के अभाव में मनमानी पर उतर कर अपने ही मन की करती है। जनता भी इनके झांसे में आकर आंख-मुंदकर अपनी मेहनत की कमाई ऐसे ठगो के हवाले कर देते है। लेकिन मानिटरिंग सिस्टम नहीं होने की वजह से कई बार पब्लिक की रकम डूब जाती है।
यही वजह है कि वित्त विभाग ने उपराज्यपाल के पास जो प्रस्ताव भेजा है उसमें निवेशकों के धन को सुरक्षित बनाए जाने पर अधिक जोर दिया गया है। इसके लिए चिटफंड ब्रांच में कर्मचारियों की अतिरिक्त तैनाती करके इसे मजबूती देने की योजना भी बनाई गई है।
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