वैसे तो आप मल्टी लेवल मार्केटिंग से भले भांति परिचित है, और आपको यह भी पता होगा कि यह कैसे काम करती है, और इसके प्रोसीज़र के बारे मे भी जानकारी रखते होंगे। लेकिन क्या आपको इसके इतिहास के बारे मे पता है, इसकी शुरूआत कैसे और कंहा पर हुई थी……………आइए एक नज़र डालते है मल्टी लेवल मार्केटिंग के इतिहास पर
एक नज़र इतिहास पर
मल्टी लेवल मार्केटिंग की शुरूआत साल 1951 के दशक मे कनाडा से हुई थी। तथा मल्टी लेवल मार्केटिंग, (MLM) से तात्पर्य है, कंपनी का कोई भी प्रोडक्ट बिना किसी बिचैलिए व स्टाॅकिस्ट, होलसेलर या रिटेलर के बजाए डायरेक्ट ग्राहक तक पहुंचाना होता है। तथा कंपनी से प्रोडक्ट मार्केट भाव से 30 से 50 सस्ता मिलता है, उसमे कोई मिलावट नहीं हो सकती क्योकि बीच में कोई बिचोलिया नहीं होता तथा कंपनी के गोदाम से सीधा माल ग्राहक के पास आता है और कंपनी के विज्ञापनकर्ता आप खुद है। इसलिए कंपनी आपको 30 से 40 कमीशन के रूप में डिस्ट्रीबुट करती है।
आप एक उदहारण देखे कि एक कंपनी 1 किलो चाय 200 रु में बेच सकती है, लेकिन उसके खरीददार कम है तो कंपनी क्या करेगी किसी क्रिकेट खिलाडी,फिल्म हीरो, हेरोइन से उसका विज्ञापन मीडिया जैसे टीवी न्यूजपेपर में करवाएगी जिसे देखकर दर्शक ये मान लेता है ये विज्ञापन सही है और 200रु किलो की चाय 250रु से 300 रु देकर खरीद लेता है। जिसमे 30 से 40 कीमत विज्ञापन की ग्राहक को ही चुकानी पडती है।
आप इस बात को तो अच्छी तरह जानते होंगे कि प्रोडक्ट के विज्ञापन करने के लिए सेलिब्रिटी करोडो रूपए लेते हैं, क्या आप ये भी जानते है वो करोडो रूपए अप्रत्यक्ष रूप से ग्राहको को ही चुकाने पडते है। अगर अनुमान लगाया जाये तो एक आदमी जो वेतन पाता है । वह अंजाने मे अपनी कमाई का 30 से 40 प्रतिशत भाग विज्ञापन के लिए अदा करता है। जिससे आम आदमी बेखबर रहता है।
आपके सामने एक उदहारण और पेश करता हूं, एक कोल्ड ड्रिंक की बोटल की लागत सिर्फ 1रु पड़ती है क्योकि उसमे सिर्फ जीरा वाटर होता है वो भी बासी और उसमे किट नाशक मिलाया जाता है ताकि कोल्ड ड्रिंक सड़े नहीं,वो एक रु का बासी पानी हम 10रु में पीते है क्योकि सेलेब्रिटी विज्ञापन में पीने को कहते है। इस के लिए कुछ हद तक हम जिम्मेदार है क्योकि भारत में ग्राहक जागरूकता की कमी है।
इस से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है, कंपनी और ग्राहक एक हो जाये तथा बीच के बिचोलियों को हटा दिया जाये और वो तरीका है कोई अच्छी मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनी से जुड़ने का।
कंपनी के बारे मे रखें पूर्ण जानकारी
कंपनी का इतिहास पुराना होना चाहिए, उसके मालिको का इतिहास कैसा है उसकी मार्केट में क्या इज्जत है, कंपनी फर्जी तो नहीं है उसका हेड ऑफिस और उसकी ब्रांच के बारे मे पूर्ण रूप से जानकारी रखना, तथा कंपनी के साथ हमेशा।
कंपनी के प्रोडक्ट
कंपनी के प्रोडक्ट के बारे मे अधिक से अधिक जानकारी रखना, क्या कंपनी अपना प्रोडक्ट स्वंय ही बनाती है, या फिर किसी अन्य कंपनी से टाई-अप है। क्या कंपनी के प्रोडक्ट एक आम भारतीय उपभोक्ता के काम के है, क्या कंपनी के प्रोडक्ट बाज़ार से बहुत मंहगे है।
कंपनी के प्रोडक्ट की क्वालिटी
कंपनी के प्रोडक्ट की क्वालिटी उत्तम होनी चाहिए, ऐसा तो नहीं कंपनी खुद का या किसी दूसरी कंपनी का घटिया प्रोडक्ट थमा रही हो। अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा ही असर आपके उपर पडेगा। जिसके कारण आपकी साख पर बट्टा लगना निश्चित ही तय है।
कंपनी का खुद का प्रोडक्ट केटलोग व मार्केट डिमांड
कंपनी का खुद का मेन्यूफैक्चुरिंग केटलोग होना चाहिए तथा कंपनी खुद प्रोडक्ट बनानी चाहिए,अगर किसी कंपनी के प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रही है तो कंपनी उस प्रोडक्ट की क्वालिटी कंट्रोल को चेक करे ताकी ग्राहक को घटिया प्रोडक्ट नहीं मिले।इसके साथ ही आपको मार्किट मे चल रही ग्राहको की डिमांड को भी देखना होगा, और उनकी डिमांड आपको उपर ही अश्रित है, जिसे आपको ही पुरा करना होगा।
कंपनी के साथ जुड़े हुए डिस्ट्रीबुटर की संख्या
एक अच्छी कंपनी के साथ बहुत सारे डिस्ट्रीबुटर धीरे धीरे और स्थाई रूप से जुडेंगे, यदि किसी कंपनी के साथ बहुत सारे डिस्ट्रीबुटर अचानक एक साथ जुड़ जाये या अचानक एक साथ छोड़ कर चले जाये तो कंपनी की विस्वसनीयता पर शक हो जाता है। क्योंकि एक अच्छी कंपनी कभी भी लुभावने वादे लेकर नहीं आती, वह तो लेकर आती है काम और विश्वास, अगर डिस्ट्रीबुटर विश्वास के साथ काम करे ।
अगर आपके पास भी मल्टी लेवल मार्केटिंग (MLM) से जुडी कुछ जानकारी है या फिर आप विचार शेयर करना हैं तो कमेंट बाक्स मे जाकर कमेंट कर सकतें हैं।
Sunil Kumar Yafav says
Very Good it is true