शहर हो या फिर कोई देहात,या छोटा सा कस्बा, चिटफंड कंपनियों का तो सिर्फ एक ही सपना बनकर रह गया है, जो लूटे उसे लूटो, जंहा मन करे वहीं काला बाज़ारी फैलाओ, जंहा दिल करे वंही पर कार्यालय खोल दो लोगो को झुठे सपने दिखाओ, और शुरु मे उन्हे उनका हिस्सा देकर उन्हे विशवास की छुरी के नीचे लाओ और बाद मोटी रकम इकठ्ठी हो जाऐं तो लेकर फरार हो, क्योंकी कोई पुछने वाला नही है। संबधित प्रशासन भी जब नींद से जागता है तब तक कंपनी के कार्योलयो पर ताला लटका नजर आता है और सालो तक नींद मे लीन हो जाते है।
ऐसा इस आधार पर कहा जा रहा है क्योंकी पीछले सिर्फ तीन-चार सालो मे एक दर्जन से अधिक चिटफंड कंपनियां 2100 करोड़ रुपए लेकर उडन-छू हो चुकी है। बावजूद इसके अभी भी शहर भर मे 50 से ज्यादा ऐसी चिटफंड कंपनियां लोगो से पैसा वसुल रही है जिन्होने ने तो रिजर्व बैंक से अनुमति ली और न ही जिला प्रशासन को इसके बारे मे अवगत करवाया गया है। इन सबके बावजूद भी उनमें एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश हो चुका है। यह सारा कांड जिला और पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है जिनपर कार्यवाही करने की बजाए मूक बनकर देख रहे है।
मोटी रकम का झांसा
शहर भर मे चिटफंड जैसा काला बाज़ारी करने वाले लोग निवेशको को जमीन का कारोबार या अन्य किसी भी कारोबार का हवाला देकर उनको कम समय मे मोटी रकम कमाने का लालच देकर उन्हे चुना लगाकर फरार हो जाते है। लोगों को उनकी रकम पांच से छह साल में दोगुनी और दस साल में चार गुना होने का प्लान बताया गया । अभी तक जो कंपनियों यहां से पैसे लेकर फरार हुई है, उन्होंने भी ऐसा ही झांसा दिया था, और वैसा ही हुआ जो दुसरी चिटफंड कंपनियां करती आई है समय पुरा होने से चंद दिनो पहले फरार हो गऐ।
एंजेंटो के कंधो पर होता है सारा दारोमदार
चिटफंड कंपनी चलाने वाले ज्यादातर प्रबंधक अन्य देशो,या फिर अन्य राज्य के होते हैं, जो कि अधिकतर बाहर ही रहते है। इसलिए उन्होंने पैसे वसूलने के लिए प्रत्येक शहर के स्थानीय युवकों को एजेंट के तौर पर नियुक्त किया है साथ ही इसके लिए एजेंट को सैलेरी के साथ कमीशन दिया जाता है। कंपनी का सारा दारोमदार एजेंट के ही कांधो पर होता है। स्थानीय होने के कारण एजेंट की बातों में लोग आते हैं और उसका चेहरा देखकर पैसा जमा कराते हैं। एजेंट शहरी क्षेत्रों के साथ ही गांवों में चले जाते हैं। जिनमे से कम पढे लिखे लोगो ही अधिकतर इनके झांसे मे आकर लूटकर बैठ जाते है।
प्रशासन को नही है सूद,और न ही उपलब्ध है ब्यौरा !
चिटफंड कंपनियों पर कार्रवाई करने का सीधा अधिकार कलेक्टर के पास है, लेकिन इन कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही तो तब होगी जब जिला प्रशासन के पास इन कंपनी की कोई जानकारी होगी, अभी तक जिला प्रशासन के पास ऐसी कोई कंपनियों की सूची ही नहीं है। आरबीआई के नियमों के अनुसार कोई भी कंपनी अपना कारोबार शुरू करती है तो इसकी सूचना प्रशासन को देनी होती है। लेकिन शहर में चलने वाली एक भी चिटफंड कंपनी ने कलेक्टर को सूचना दिये बगैर चला रहे है।
आरबीआई की लिस्ट में नहीं है चिटफंड कंपनियो का रजिस्ट्रेशन
राजधानी में धडल्ले से 50 से ज्यादा चिटफंड कंपनियां चल रही हैं। इनमें से किसी का भी रजिस्ट्रेशन आरबीआई में नहीं है। आरबीआई के पास जो नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां रजिस्टर्ड हैं उनमें से ज्यादातर देश की जानी-मानी कंपनियां है। इस लिस्ट में रायपुर में चलने वाली एक भी नॉन बैंकिंग कंपनी का नाम शामिल है। इसके बाद भी ये कंपनियां खुले आम लोगों से पैसा निवेश करवा रही है।
कुछ मामले मे रिपोर्ट तलब
सिविल लाइन थाने में कल्चुरी इनवेस्टमेंट कंपनी के नाम पर लोगों से करोड़ों की ठगी करने का मामला दर्ज करवाया गया है। इसके अलावा बड़ी कंपनियों में नौकरी लगाने के नाम 75 करोड़ का गोलामाल। प्लेसमेंट कंपनी के खिलाफ छात्रों की शिकायत पर केस तेलीबांधा थाने में दर्ज, इसी के साथ ही तेलीबांधा थाने में मर्चेंट नेवी में भर्ती कराने के नाम पर बेरोजगारों से लगभग 80 लाख रुपए की ठगी। पलारी में रॉयल केयर विजन कंपनी ने लोगों से 20 करोड़ ठगे।
कंपनी ने कलेक्टर को आडे हाथ भी नही लिया
कंपनी का कहना है कि हमारी कंपनी को-ऑपरेटिव कंपनी है। इसमें बैंकिंग का कारोबार होता है, को-ऑपरेटिव कंपनी की सूचना कलेक्टर को देने की कोई जरूरत नहीं होती है। सिविल लाइन थाने की पुलिस ने कंपनी की पूरी जांच कर उसे क्लीन चिट दी है। हम सारे काम लीगल तरीके से कर रहे हैं।
डीएस सोनकर
ब्रांच मैनेजर
एडीवी क्रेडिट को ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड, पंडरी
आरबीआई से नही है हमारा कोई लेना-देना
हम रियल इस्टेट के नाम पर पैसा निवेश कराते हैं। कंपनी चलाने की जानकारी संबंधित थाना अधिकारी को दी गई है। आरबीआई से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। अब तक कितने लोगों को प्लॉट दिए गए हैं इसकी जानकारी फिलहाल नहीं है। सबकुछ नियमों से हो रहा है।
संतोष सिंह
ब्रांच मैनेजर
सांई प्रकाश प्रॉपर्टी डेवलपमेंट लिमिटेड, धमतरी रोड
आरबीआई का नियम
1 . नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के लिए द रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 के
2 . द रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1943 की धारा 45 आई के तहत नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को आरबीआई से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेना आवश्यक है।
3 . प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने वाली सभी कंपनियों की जांच के बाद आरबीआई उन्हें प्रमाण पत्र देती है।
4 . एक्ट की धारा 45 एमसी के अनुसार यदि रिजर्व बैंक इन बैंकों द्वारा 45 आईए के प्रावधानों और आरबीआई के
निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है तो रिजर्व बैंक कंपनी एक्ट 1956 के अंतर्गत इन नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को बंद
करने या समेटने या या वाइंड अप करने का दावा कर सकती है।
अगर आपके पास भी मल्टी लेवल मार्केटिंग (MLM) से जुडी कुछ जानकारी है या फिर आप विचार शेयर करना हैं तो कमेंट बाक्स मे जाकर कमेंट कर सकतें हैं।
Nitesh says
Soical tarde company logo ko chutiya bana rahe hai logo ka pisa logo mai de rahe hai ashe company ko jaldi he band kiya jaye